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Vice President of India :लोगों के जीवन में वीपी की भूमिका

Vice President of India :लोगों के जीवन में वीपी की भूमिका

Vice President of India :लोगों के जीवन में वीपी की भूमिका

भारत के उपराष्ट्रपति का लोगों के जीवन में मुख्य रूप से दो बड़े और महत्वपूर्ण रोल होते हैं, जो संविधान द्वारा निर्धारित हैं:

  1. राष्ट्रपति के अभाव में कार्यपालक का काम करना
    उपराष्ट्रपति, भारत का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पदधारी होता है। जब राष्ट्रपति अनुपस्थित होते हैं, बीमार होते हैं, इस्तीफा देते हैं, या किसी वजह से अपने कर्तव्य नहीं निभा पाते, तब उपराष्ट्रपति उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं। इस प्रकार वह राष्ट्र के प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं, जो देश की स्थिरता और शासन की निरंतरता सुनिश्चित करता है।
  2. राज्यसभा के सभापति के रूप में सेवा
    उपराष्ट्रपति संसद के उच्च सदन, राज्यसभा के सभापति होते हैं। वे राज्यसभा की कार्यवाही की अगुवाई करते हैं, सदन के सदस्यों के बीच चर्चा को नियंत्रित करते हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि सदन के नियम ठीक से पालन हों। वे सदन की कार्यप्रणाली का पालन कराते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इन दोनों भूमिकाओं के कारण उपराष्ट्रपति का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से लोगों की राजनीतिक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में महसूस किया जाता है। वे भारत के शासन व्यवस्था में संतुलन और संचालन के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं।

सरल शब्दों में, उपराष्ट्रपति एक तरह से जनता और देश के लिए एक संरक्षक का काम करते हैं, जो देश के सर्वोच्च पद के संचालन को सुचारू बनाते हैं और संसद की कार्यवाही में संयम और अनुशासन बनाए रखते हैं।

यह भूमिका लोगों के जीवन में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश की लोकतांत्रिक परंपरा, संविधान के पालन और शासकीय कार्यों की स्थिरता की गारंटी देती है। बिना उपराष्ट्रपति के ये प्रक्रियाएं प्रभावित हो सकती हैं, जिससे देश की राजनीतिक स्थिरता और विकास पर असर पड़ सकता है।

क्या वह भारत के लोगों के प्रति उत्तरदायी हैं

भारत के उपराष्ट्रपति जनता से सीधे रूप में जवाबदेह (responsible) नहीं होते। उनका मुख्य कर्तव्य संविधान और संसद के प्रति होता है। उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्यों द्वारा किया जाता है, और वे उन सदस्यों को जवाब देते हैं, न कि सीधे आम जनता को।

हालांकि, उपराष्ट्रपति समय-समय पर जनता के बीच जाकर चर्चा और संवाद का माहौल बनाने का काम जरूर करते हैं, लेकिन उनकी जिम्मेदारी सीधे जनता को जवाब देने की नहीं होती। वे संविधान की रक्षा, संसद की कार्यवाही का संचालन और आवश्यकतानुसार राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वाह करते हैं। इस कारण वे जनता के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि नहीं होते, बल्कि अधिकतर संवैधानिक और विधायी कार्यों में लगे रहते हैं।

इसलिए, उपराष्ट्रपति सीधे जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं, बल्कि उनका दायित्व संविधान, संसद और राष्ट्र के प्रति होता है।

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